जंगलो में अक्सर घूमते हुए ये पता चला की किसान भी आस पास खेती करते हैं,जब वो आपको आधुनिक भेष में देखते हैं तो अक्सर अपने दर्द की कहानी सुनाते है, जो सुन ने बड़ी ही असह्निया और मुँह पर ताले लगा देती है, पानी की कमी,और बिजली का ना होना। जंगल और पशुओं से प्रेम में तब समझ आया की ये किसान किसी को दिखते नहीं है तब भी नहीं जब बहुत भूख के बाद 5 रुपये वाला Parle G भी भूख मिटा देता है। बोला बहुत कुछ जाता है किया कुछ नहीं जाता,उदहारण के लिये ये KUSUM योजना
भारत सरकार ने किसानों को उनके खेतों में सौर सिंचाई पंप (एसआईपी) के साथ सब्सिडी देने के लिए PM-KUSUM (किसान उर्जा सुरक्षा उद्भव महाभियान) नाम से एक नई योजना शुरू की थी
इस योजना के तहत, सरकार खेतों में सोलर पम्प सेट और ट्यूबवेल स्थापित करने के लिए एक किसान को सब्सिडी प्रदान करेगी ऐसी इच्छा जताई थी
इस कुसुम योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को बिजली पैदा करने के लिए उन्नत तकनीक प्रदान करना है, इन सोलर पंपों के दोहरे लाभ हैं क्योंकि यह किसानों को सिंचाई में सहायता करेगा और, किसानों को सुरक्षित ऊर्जा उत्पन्न करने की भी अनुमति देगा,चूंकि इन पंप सेटों में ऊर्जा ऊर्जा ग्रिड शामिल होता है, किसान अतिरिक्त बिजली के बिल के बोझ तले नहीं दबेगा
और सीधे सरकार की भी बिजली की बचत होगी बेच
जिससे उनकी आय भी बढ़ेगी कुसुम योजना के दावे मसौदे के अनुसार, ये संयंत्र कुल 250 मेगावाट बिजली पैदा करने में सक्षम हैं। सौर ऊर्जा संयंत्रों के अलावा, सरकार 720 मेगावाट की क्षमता वाले डीजल पंपों के साथ नए सौर पंपों की दिशा में काम कर सकती थी ।हर किसान को इस नए और बेहतर सौर ऊर्जा संचालित पंप पर भारी सब्सिडी मिलेगी ये भी कहा गया था। सौर संयंत्रों से सौर ऊर्जा और बिजली के बढ़ते उपयोग से प्रदूषण का स्तर कम होगा।
अनुदान किसानों के लिए सब्सिडी पंप और ट्यूबवेल स्थापित करने के लिए लागत वितरण निम्नानुसार घोषित की गई थी।
कुल लागत का 60% केंद्र सरकार, 30% बैंक ऋण बाकी 10% कुल लागत किसानों को देनी होगी
आवेदन ।। किसान कुसुम योजना के लिए https://kusum.online/# आवेदन लिंक जो काम ही नहीं कर रहा है तो किसानो का इसका कोई लाभ नहीं हुआ है अभी तक। उन तक ये जानकारी पहुंचाई भी नहीं गई
रुकावट सारी योजना एक ऐसी जगह रुक गई की अनसुनी कहना ज्यादा बेहतर होगा इसे
सोलर उर्जा का तोहफा चौंकाने वाली बात यह है की 06 सितंबर 2019 की खबर के अनुसार भारत सरकार ने देश की आपदा को नकारते हुए ये फैसला देश हित में नहीं लिया , परन्तु विश्व निकाय के मुख्यालय में संयुक्त राष्ट्र की इमारत की छत पर सौर पैनलों की स्थापना के लिए एक मिलियन अमरीकी डालर का योगदान दिया है।
योगदान कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और स्थायी ऊर्जा को बढ़ावा देने में मदद करने के लिये देने का फैसला, भारत के किसानों को नाकारने की ऐसी क्या मजबूरी या लाचारी आ गई थी!
सरकार को इसका जवाब देना चाहिये,जो शायद वो हमेशा की तरह एक तरफ़ा अनसुना करके चलती बनेगी। संयुक्त राष्ट्र के ह्यूमन राइट्स विंग को सोलर पैनल्स & ग्रीन रूफ बनाने के लिए ये तोहफा कुछ अटपटा सा है।
अगर ये भारतीय किसानों को गुडविल जेस्चर के रूप में आवंटित किए गए होते, तो इससे कृषि विकास में सुधार हो सकता था, जिससे उच्च फसल की पैदावार में मदत मिलती, जो पानी के अभाव में सबसे बड़ी दिक्कत है।
इस स्तर पर जब अर्थव्यवस्था कम हो रही है 5% जीडीपी के रूप में, इस स्तर पर विनिर्माण और कृषि में वृद्धि बहुत महत्वपूर्ण है तो सरकार पूरी तरह नकार चुकी है
किसानों की भूमि के पास, सरकारी वन भूमि, मानव पशु संघर्ष के लिए अग्रणी किसान क्षेत्रों के लिए एक बड़ी अशांति पैदा करती है।
जंगल सूखे हैं और पानी की तलाश में जानवर जंगल से बाहर निकलते हैं और इससे संघर्ष पैदा होता है, जंगल हमारी धरोहर है और मौसम परिवर्तन में एक ही स्त्रोत है जिसको पूंजीवादियों के लिये बर्बाद किया जा चुका है,वन अधिकारी जो जंगल में पौधे लगाते हैं पानी के अभाव में बहुत पौधे मर भी जाते हैं, सोलर पम्प जंगल को हरा भरा रखने में काफी मददगार साबित होते!
अक्सर जंगल में आग लगने से नुकसान होने पर पानी का कोई इंतजाम नही होता है, ऐसे में सोलर पम्प एक वरदान साबित हो सकते है।
13% बंजर ज़मीन पर अगर ये सोलर पेनल तटीय क्षेत्रों पर बिछाये जाते एक सोलर फार्म के रुप में तो condensation की प्रक्रिया से वर्षा वनो का संरक्षण किया जा सक्ता था, जिस से बारिश के वर्षा जल संचयन भूजल पुनर्भरण में मदद कर सकता था
हालांकि संयुक्त राष्ट्र को एक अरब को ये तोहफा पर्यावरण प्रेमी और किसानों के लिये के लिए बहुत चौंकाने वाला है,की हमारी सरकार अपने ही देश के खिलाफ लगती है,इस कदम से तो यही लगता है की देश की बागडोर वक़ाई कहीं और है।
#100DaysNoVikas #WatchmanChorHai
Nice information
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